Kavita Jha

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वो सर्द राते




शीर्षक: वो सर्द रात


रेलवे प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार करता मै अपने साल भर के अंशु को ठंड से बचाने की कोशिश कर रहा था ,दिल्ली में दिसंबर की वो बर्फ जमा देने वाली ठंड से मेरे पैर कांप रहे थे।मेरी पत्नी रुचिका अचानक उठे पेट दर्द से छटपटा रही थी। ट्रेन अपने निर्धारित समय से आठ घंटे देरी से आने वाली थी , ये मैं अपने ससुराल से निकलने से पहले ही बार बार चैक कर रहा था। 
डेढ़ साल बाद मैं रुचिका से मिलने और उसे अपने घर अपने शहर वापस लेने आया था।
 अंशु अपने अंश से तो पहली बार ही मिला था। रुचिका जब प्रेगनेंट हुई तो डॉक्टर ने उसे बेड रेस्ट के लिए कहा, इससे पहले दो बार उसका गर्भ गिर गया था,इस बार मैं भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। उसके माता-पिता ने यही सलाह दी कि वो उनके पास आकर रहे जब मेरी सासू मां ने कहा,"पहला बच्चा हमारे में मायके में ही शुभ होता है।" तो मुझे भी यही सही लगा और मैं रुचिका को उसके मायके दिल्ली लेकर आ गया। 
उसे छोड़ने के बाद मैं वापस अपने शहर अहमदाबाद आ गया। फोन पर हमेशा बात तो होती थी पर अपनी प्राइवेट नौकरी को बचाए रखने की जद्दोजहद में अपने बच्चे अपने अंश के जन्म पर भी उससे मिलने ना आ सका। अब मुझे ज्यादा पैसे जोड़ने थे अपने बच्चे के लिए, बस मैं काम में व्यस्त रहा और रुचिका के मम्मी पापा भी चाहते थे कि बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए।
समय पंख लगा कर आगे बढ़ता गया और आज साल भर का मेरा अंश मेरी गोदी में मुझे एकटक देख रहा है। उसके ठिठुरते पैरों को मैं लगातार अपने हाथों से रगड़ कर गर्म करने में जुटा हूं।अपनी जैकेट तो रुचिका को पहना दी। कितनी कठिन रात है ये मेरे लिए। कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूं किस पर गुस्सा करूं।मेरे बार बार कहने पर भी साले साहब और ससुर जी जिन्हें अपने पिता समान मानता हूं क्यों नहीं समझ पाऐ मेरी बात। रात दस बजे आने वाली ट्रेन सुबह छह बजे आएगी तो मैं सिर्फ यही चाहता था कि हम सुबह पांच बजे ही घर से निकले, लेकिन नहीं साले साहब तो जिद्द पर आ गए और कहा," कमल जी आप सब जो टिकट पर समय दिया है उसी हिसाब से रेलवे स्टेशन पहुंचिए।इतनी ठंड में पूरी रात,अपनी बिहार पत्नी और छोटे से बच्चे को लेकर हर एक मिनट बिताना बहुत कठिन लग रहा था।
ये सर्द रात बहुत ही भयावह लग रही है। अंशु को सुला कर मैं रुचिका के पास बैठा बस यही सवाल बार बार जेहन में आ रहा है क्या मैं अपने ससुराल में एक दिन नहीं रुक सकता था या रुचिका उनकी बेटी उन पर बोझ हो गई थी। 


लेखिका : कविता झा

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5 Comments

Niraj Pandey

16-Nov-2021 09:31 AM

बहुत ही जबरदस्त

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Seema Priyadarshini sahay

16-Nov-2021 01:06 AM

सुंदर कहानी

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Zakirhusain Abbas Chougule

16-Nov-2021 12:26 AM

Nice

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